Saturday 25 May 2019

सच और झूठ

#सच_और_झूठ_
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मैं सच और तुम झूठ
हो नहीं सकता 
मेल तेरा मेरा
मैं अनाड़ी
तुम खिलाड़ी
मैं अकड़ू तुम लचीले
मैं साधारण तुम सजीले
बोर हो जाओगे मेरे साथ तुम
क्यों कि
मैं शान्त और तुम रंगीले
इसलिए
बहुत मिलेंगे मित्र तुम्हें
खूब करना मस्ती
कागज की ही सही
पर तैरेगी तुम्हारी कस्ती
बटोर लेना उसमें तुम
खूब सारी खुशियाँ
वह भी सस्ती
फिर
बढ़ जायेगी तुम्हारी हस्ती
अकड़ अकड़ कर चलना
किन्तु
मुझसे दूर ही रहना
बहुत से कंटक हैं मेरे आस पास
मेरे पथ पर
मैनें तो सीख लिया है उनके साथ रहना
उनके संग चलना
डरता हूँ कि कहीं
कहीं चुभ न जाये तुम्हें
हाँ किन्तु तुम्हारी कस्ती जब डूब जाये न
फिर याद कर लेना
मुझ सच को
सच्चाई से
शायद तुम्हारे
किसी काम आ सकूँ

©किरण सिंह

Sunday 19 May 2019

प्रातःकाल

प्रातःकाल
सागर दर्पण में
देख
क्षितिज पर
प्रभाकर मुखमंडल का
दमक जाना
और फिर
मन का
विवश हो जाना
सोंचने पर कि
रात्रि प्रहर
सूरज
विश्राम किया
या कहीं
मधुरस
पी लिया
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©किरण सिंह

Tuesday 1 January 2019

स्वागत है हे नव वर्ष

स्वागत है हे नव वर्ष

घने कोहरे को चीर किरण
मन में नव आस जगाई
जीवन के कोहरे भी छट जाएंगे
जग को नित पाठ पढ़ाई

नव पथ पर हम कदम बढ़ाएं
कुछ नए पदचिन्ह बनाएं
जोड़ते चलें नव कदमों को
कदम कदम पर कदम मिलाएं

कटु अनुभूतियों से सीख कर
कुछ याद कर कुछ भूलकर
कुछ परिवर्तन होना ही है
कुछ पाना है कुछ खोकर

बीत गया वो अतीत कहानी
जीवन पथ की रीति पुरानी
नव सर्जन स्वीकार सहर्ष
स्वागत है हे नव वर्ष
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© किरण सिंह

Friday 9 March 2018

दायरे

जिस प्रकार महिलाएँ किसी की बेटी बहन पत्नी तथा माँ हैं उसी प्रकार पुरुष भी किसी के बेटे भाई पति तथा पिता हैं इसलिए यह कहना न्यायसंगत नहीं होगा कि महिलायें सही हैं और पुरुष गलत ! पूरी सृष्टि ही पुरुष तथा प्रकृति के समान योग से चलती है इसलिए दोनों की सहभागिता को देखते हुए दोनों ही अपने आप में विशेष हैं तथा सम्मान के हकदार हैं!
महिलाएँ आधुनिक हों या रुढ़िवादी हरेक की कुछ अपनी पसंद नापसंद, रुचि अभिरुचि बंदिशें, दायरे तथा स्वयं से किये गये कुछ वादे होते हैं इसलिए वे अपने खुद के बनाये गये दायरे में ही खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं !
उन्हें हमेशा ही यह भय सताते रहता है कि लक्ष्मण रेखा लांघने पर कोई रावण उन्हें हर न ले जाये ! वैसे तो ये रेखाएँ समाज तथा परिवार के द्वारा ही खींची गईं होती हैं किन्तु अधिकांश महिलाएँ इन रेखाओं के अन्दर रहने की आदी हो जातीं हैं इसलिए आजादी मिलने के बावजूद भी वे अपने लिये स्वयं रेखाएं खींच लेतीं हैं... ऐसे में इन रेखाओं को जो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध लांघने की कोशिश करता है तो वह शख्स शक के घेरे में तो आ ही जाता है भले ही कितना भी संस्कारी तथा सुसंस्कृत क्यों न हो इसलिए यदि कोई महिला अपने आप में सिमटकर रहना चाहती है तो उसके इस व्यवहार से पुरुषों को आहत नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें सम्मान देना चाहिए क्योंकि वे भी तो अपने घर की महिलाओं से ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं!
यह मनुष्य का स्वभाव ही है कि वह अपनी प्रशंसा से खुश और आलोचना से दुखी हो जाता है इसलिए जब पुरुष और स्त्री में आपसी मैत्रीपूर्ण व्यवहार हो तो एकदूसरे की प्रशंसा लाजमी है ! यह भी सही है कि प्रशंसा के मामले में स्त्रियों की तुलना में पुरुष कुछ ज्यादा ही उदार होते हैं यह अच्छी बात है किन्तु  प्रशंसा भी मर्यादा में रहकर सम्मानजनक रूप में ही की जानी चाहिए  वर्ना लेने के देने पड़ जायेंगे ! पुरुष हो या स्त्री दूसरे को मान देने से पहले उन्हें अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि सम्मानित व्यक्तियों के द्वारा दिया गया मान अधिक सम्मानजनक होता है या यूँ भी कहा जा सकता है कि जो स्वयं को मान नहीं दे पाये वो औरों को क्या सम्मान देगा!
यह बात आभासी जगत में भी लागू होता  है जहाँ महिलाओं को अभिव्यक्ति की आजादी मिली है ! यहाँ किसी का हस्तक्षेप नहीं है फिर भी अधिकांश महिलाओं ने अपना दायरा स्वयं तय कर लिया है.! जहाँ तक अपने बारे में जानकारी देना सही समझती हैं वे अपने प्रोफाइल, पोस्ट तथा तस्वीरों के माध्यम से दे ही देतीं हैं! और दायरों के अन्दर कमेंट के रिप्लाई में कुछ जवाब दे ही देतीं हैं इसीलिये बिना विशेष घनिष्टता या बिना किसी विशेष जरूरी बातों के मैसेज नहीं करना चाहिए और यदि कर भी दिये तो  रिप्लाई नहीं मिलने पर यह  समझ जाना चाहिए कि अमुक व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर बातें करने में रुचि नहीं है या फिर उसके पास समय नहीं है या कुछ और विवशता है इसलिए दुबारा मैसेज नहीं भेजना चाहिए !
इसके अलावा  कमेंट तथा रिप्लाई भी दायरों में रह कर ही सम्मानजनक रूप में करना चाहिए !  जिससे पुरुषों के भी स्वाभिमान की रक्षा हो सके तथा वे भी अपने हिस्से का सम्मान प्राप्त कर सकें!

©किरण सिंह

Monday 15 January 2018

मित्रता

मित्रता एक ऐसा सम्बन्ध है, जिसे हम स्वयं बनाते हैं। बाकी सारे रिश्ते ताे जन्म के साथ ही बन जाते हैं।
मित्रता वह भावना है जो दो व्यक्तियों के  हृदयों को आपस में जोड़ती है! जिसका सानिध्य हमें सुखद लगता है तथा हम मित्र के साथ  स्वयं को सहज महसूस करते हैं, इसलिए अपने मित्र से अपना दुख सुख बांटने में ज़रा भी झिझक नहीं होती ! बल्कि अपने मित्र से अपना दुख बांटकर हल्का महसूस करते हैं और सुख बांटकर सुख में और भी अधिक सुख की अनुभूति करते हैं!
वैसे तो कहा जता है कि मित्रता में जाति, धर्म, उम्र तथा स्तर नहीं देखा जाता ! किन्तु मेरा व्यक्तिगत अनुभव कि मित्रता यदि समान उम्र , समान स्तर , तथा समान रूचि के लोगों में अधिक गहरी होती है क्योंकि स्थितियाँ करीब करीब समान होती है  ऐसे में एक दूसरे के भावनाओं को समझने में अधिक आसानी होती है इसलिए मित्रता अच्छी तरह से निभती है!

वैदिक काल से ही मित्रता के विशिष्ट मानक दृष्टिगत होते आये है| जहाँ रामायण काल में राम और निषादराज, सुग्रीव और हनुमान की मित्रता प्रसिद्ध है वहीँ महाभारत काल में कृष्ण- अर्जुन, कृष्ण- द्रौपदी और दुर्योधन-कर्ण की मित्रता नवीन प्रतिमान गढती है| कृष्ण और सुदामा की मित्रता की तो मिसाल दी जाती है जहाँ अमीर और गरीब के बीच की दीवारों को तोड़कर मित्रता निभाई गई थी |
वैसे तो जीवन में मित्रता बहुतों से होती है लेकिन कुछ के साथ अच्छी बनती है जिन्हें सच्चे मित्र की संज्ञा दी जा सकती है ! तुलसीदासजी ने भी लिखा है “धीरज,धर्म, मित्र अरु नारी ;आपद काल परखिये चारी| अर्थात जो विपत्ति में सहायता करे वही सच्चा मित्र है|

अब मित्रता की बात हो और आभासी मित्रों की बात न हो यह तो बेमानी हो जायेगी! बल्कि यहीं पर ऐसी मित्रता होती है जहाँ हम सिर्फ और सिर्फ भावनाओं से जुड़े होते हैं! यहाँ किसी भी प्रकार का स्वार्थ नहीं जुड़ा होता! बहुत से लोगों का मत है कि आभासी दुनिया की मित्रता सिर्फ लाइक कमेंट पर टिकी होती है यह सत्य भी है,किन्तु यदि हम सकारात्मक दृष्टि से देखेंगे तो यह लाइक और कमेंट ही हमें आपस में जोड़तें हैं ! क्यों कि पोस्ट तथा लाइक्स और कमेंट्स ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को उजागर करता है जिनमें हम वैचारिक समानता तथा शब्दों में अपनत्व को महसूस करते हैं और मित्रता हो जाती है!
यह भी सही है कि आभासी दुनिया की मित्रता में बहुत से लोग ठगी के शिकार हो रहे हैं! इस लिए मित्रों के चयन में सावधानी बरतना आवश्यक है चाहे वह आभासी मित्रता हो या फिर धरातल की!
मित्रता एक खूबसूरत बंधन है जो हमें एकदूसरे से जोड़ कर हमें मजबूती का एहसास कराता है ! इसलिए इस बंधन को टूटने नहीं देना चाहिए !
मैथिली शरण गुप्त जी ने बहुत ही खूबसूरतती से मित्रता को परिभाषित किया है...

     तप्त हृदय को , सरस स्नेह से ,
     जो सहला दे , मित्र वही है।

     रूखे मन को , सराबोर कर, 
     जो नहला दे , मित्र वही है।

     प्रिय वियोग  ,संतप्त चित्त को ,
     जो बहला दे , मित्र वही है।

     अश्रु बूँद की , एक झलक से ,
     जो दहला दे , मित्र वही है।

        *मैथिलीशरण गुप्त*

  

©किरण सिंह

Thursday 7 December 2017

साहित्यकार किरण सिंह परिचय



नाम - किरण सिंह

पिता का नाम - स्व श्री कुन्ज बिहारी सिंह ( एडवोकेट) 

माता का नाम - श्रीमती दमयंती देवी 

पति का नाम - श्री भोला नाथ सिंह ( बिहार राज्य विद्युत बोर्ड से रिटायर्ड डी, जी, एम) 

जन्मस्थान - ग्राम - मझौआं  , जिला- बलिया

उत्तर प्रदेश 

मूल निवास ( ससुराल) - ग्राम अखार, जिला बलिया 

जन्मतिथि २८- १२ - १९६७

शिक्षा 

प्रार्थमिक शिक्षा - सरस्वती शिशु मंदिर बलिया ( उत्तर प्रदेश) । 

माध्यमिक शिक्षा - राजकीय महिला विद्यालय बलिया ( उत्तर प्रदेश) । 

स्नातक - गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (उत्तर प्रदेश)

संगीत प्रभाकर ( सितार ) 

प्रकाशित पुस्तकें - १६

काव्य कृतियां - 

१-मुखरित संवेदनाएँ ( काव्यसंग्रह ) प्रथम संस्करण २०१६ तथा द्वितीय संस्करण २० २० 

२-प्रीत की पाती ( काव्य संग्रह) २०१७ द्वितीय संस्करण 2022 

३-अन्तः के स्वर ( दोहा संग्रह ) २० १८

हिन्दी संस्थान द्वारा सूर पुरस्कार से पुरस्कृत) 

४-अन्तर्ध्वनि ( कुंडलिया संग्रह, मंत्रीमंडल सचिवालय राजभाषा विभाग बिहार के अनुदान राशि से प्रकाशित ) २०२१

५-जीवन की लय  ( गीत, नवगीत संग्रह २०२२ ) 

६--हाँ इश्क है ( ग़ज़ल संग्रह २०२२) 

७-शगुन के स्वर ( विवाह गीत संग्रह २०२२)

८-बिहार छंद काव्य रागिनी ( रामायण की तर्ज पर दोहे तथा चौपाई छन्द में बिहार की गौरवगाथा) 


बाल साहित्य - 

१-गोलू - मोलू ( बाल कविता संग्रह) २० २० 

२-श्री राम कथामृतम् ( बाल खण्ड काव्य) २० २० (उत्तर प्रदेश

३- अक्ड़ - बक्कड़ बाॅम्बे बो  ( बाल गीत संग्रह २०२२) 

कथा संग्रह - 

१-प्रेम और इज्जत ( २०१९) 

२-रहस्य (२०२१) 

३-पूर्वा (२०२२) 

४-बातों - बातों में -  ( लघुकथा संग्रह २०२२) 

सम्पादन - 

१ - दूसरी पारी ( आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह) 


शीघ्र प्रकाश्य -

१-फेयरवेल ( उपन्यास )

२-दादी की कहानी ( बाल कहानी संग्रह )


सक्रियता - देश के विभिन्न प्रतिनिधि पत्र - पत्रिकाओं ( दैनिक समाचार पत्र दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान, जनसत्ता, प्रभात ख़बर, प्रभात ख़बर सुरभि, सन्मार्ग, प्रभात किरण, बाल भारती , बाल प्रहरी, बाल वाणी, बाल प्रभात, बाल भास्कर, गृह शोभा, सरिता, समय सुरभि अनंत, अहा जिंदगी, इन्दप्रस्त भारती, लहक, सामयिक परिवेश, आदि पत्र पत्रिकाओं में लगातार रचनाओं, समीक्षा तथा साक्षात्कार, का प्रकाशन ।

 आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से लगातार रचनाओं तथा साहित्यक वार्ता का प्रसारण!

राजभाषा विभाग से रचनाओं की प्रस्तुति। 

लेखन विधा - बाल साहित्य, गीत, गज़ल, दोहा, कुंडलिया, मुक्तक, घनाक्षरी, कह मुकरी, चौपाई, सरसी छन्द तथा अन्य छन्मुक्त पद्य, कहानी, लघुकथा, संस्मरण, आलेख, समीक्षा, व्यंग्य उपन्यास आदि !


सम्मान १-  सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान (  उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ २०१९ ) 

२-सूर पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा (२०२०) 


३ -बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान (२०१९)  तथा साहित्य चूड़ामणि सम्मान (२०२१) 

५- नागरी बाल साहित्य सम्मान बलिया ( २०२०) 

६- दैनिक जागरण पटना द्वारा साहित्य के लिए वुमेन अचीवमेंट अवार्ड २०२२) आदि 

आत्मकथ्य

मेरे मन में लेखन का बीज मेरे पिता ने ही डायरी देकर बोया था। तब मेरी आयु करीब दस वर्ष होगी। मैं लिखने लगी किन्तु
अट्ठारह वर्ष की आयु में ही मैं विवाह बंधन में बांध दी गई !विवाह के बाद मेरे हाथों में चूड़ियों की हथकड़ियाँ और पाँवों में पायल की बेड़ियाँ पड़ गईं जिसे हर भारतीय स्त्री अपना सौभाग्य समझती है। सो मैंने भी इसे अपना सौभाग्य मानकर कलम से नाता तोड़ लिया । डायरी आलमारी में गुम हो गई और मैं अपनी खूबसूरत दुनिया को सजाने लगी। इस क्रम में मैं भूल गई पढ़ाई लिखाई ! जिंदगी की रफ्तार में चलते – चलते पता ही नहीं चला कि कब बच्चे बड़े हो गए और उच्च शिक्षा के लिए बाहर चले गए !
लेकिन बच्चों के जाने के बाद मेरे अन्तः की दबी किरण पिंजरे से बाहर आने के लिए पंख फड़फड़ाने लगी जिसे उड़ने में मदद की मेरी बचपन की पक्की संगिनी मेरी लेखनी ने।

मेरे मन के दिये में भावना घृत भर गईं और जल उठे अन्तः के दीये! प्रकाश पुंज में स्पष्ट हो गये शब्द सुमन और मैं लिखती गई निरन्तर ! मुखर हो उठीं मेरी संवेदनाएँ ! और 2016 में प्रकाशित हो गयी मेरी प्रथम काव्य संग्रह ( मुखरित संवेदनाएँ ) ।

मैं एक नारी हूँ इसलिए नारी संवेदना के स्वर स्वयं प्रस्फुटित हो गये जो स्वाभाविक भी है ! मैने कभी राग लिखा तो कहीं विराग , कहीं ऋतुरंग लिखी तो कहीं भक्ति , कहीं वीर रस में मेरी भावनायें डूब गईं तो कहीं युग चेतना एवं उद्बोधन में ऊपर आ गई !

तत्पश्चात करीब सत्ताइस वर्षों के बाद मुझे मंच पर अपनी पुस्तक के विमोचन के अवसर पर उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । तब मेरी स्थिति बिल्कुल नई दुल्हन सी ही हो रही थी। कुछ सकुचाहट भी थी, कुछ घबराहट भी थी। सोच रही थी कि पता नहीं साहित्य जगत में मेरी रचनाओं को वो सम्मान मिल भी पायेगा या नहीं। लेकिन मैं सौभाग्यशाली रही कि न केवल मेरी रचनाओं को सराहा गया बल्कि उस मंच पर मुझे सकारात्मक आलोचना का भी सामना करना पड़ा
। सभा के अध्यक्ष महोदय डाॅ अनिल सुलभ जी की जो कि बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भी अध्यक्ष हैं। उन्होंने मेरी पुस्तक पढ़ने के बाद अपने उद्बोधन में मेरा साहित्य में स्वागत करते हुए मुझे सुझाव दिया कि चूंकि किरण सिंह जी को साहित्य तथा संगीत दोनों में ही रुचि है तो मैं चाहूंगा कि ये छंदों में लिखें। क्योंकि जब कवि का छंदात्मक सामर्थ चूक जाता है तो वह गद्य की तरफ़ बढ़ने लगता है। हलांकि कुछ वरिष्ठ कवियों ने उनके इस बात का विरोध भी किया था। लेकिन पता नहीं क्यों उनकी वो बातें मेरे दिल में बैठ गईं और मैंने इसे एक चुनौती के रूप में ले लिया।
उसके बाद मैंने छन्दों में लिखना शुरू की । फलतः
मेरी दूसरी पुस्तक प्रीत की पाती ( छंद संग्रह) 20 17 में प्रकाशित हुई जिसमें रचनाएँ श्रृंगार रस में भीगी हुई गीत, गीतिका, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी, दोहा , छंद में बंधी हुई मिलेंगी !

उसके बाद भी एक रचनाकार को संतुष्टि कहाँ मिलती है अतः मेरी तीसरी पुस्तक – अन्तः के स्वर ( दोहा संग्रह ) जिसमें मैंने अपनी दिन, दोपहर, संध्या तथा रात्रि प्रहर में उमड़ती – घुमड़ती बेबाक भावनाओं को दोहा छंद में बांधा है!
उसके बाद मेरी माँ ने कहा कि कहानियाँ भी लिखा करो। अब मैं माँ की आज्ञा कैसे टाल सकती थी सो मैंने अपने आस पास की घटित घटनाओं के कैनवास में अपनी कल्पना के रंग भरकर कहानियाँ भी लिखने लगी और 2019 में मेरी चौथी पुस्तक – प्रेम और इज्जत ( कथा संग्रह ) प्रकाशित हुई ।जिसमें मैंने विशेष रूप से मानवीय संवेदनाओं के सबसे खूबसूरत भाव प्रेम , और जीवन में पग – पग पर अपने इज्जत को सम्हालते हुए किरदारों पर प्रकाश डाला है!

उसके बाद अपनी पुस्तक अन्तर्ध्वनि ( कुंडलिया संग्रह ) के लिए भूमिका लिखवाने के सिलसिले में कवि, लेखक, गीतकार तथा बाल साहित्य की जानी-मानी हस्ती माननीय भगवती प्रसाद द्विवेदी जी से मुलाकात हो गई और उन्होंने मुझे बाल साहित्य लिखने के लिए यह कहकर प्रेरित किया कि बाल साहित्य सृजन प्रत्येक सच्चे साहित्यकार की नैतिक जिम्मेदारी है। यह बात मेरे लिए गुरुमंत्र साबित हुआ और मैं लिखने लगी बच्चों के लिए कविता ।फलतः 20 20 में प्रकाशित हो गई गोलू – मोलू ( बाल कविता संग्रह ) और लाॅकडाउन में रामायण देखते-देखते राम कहानी स्वयं ही बच्चों के लिए कविता में ढल गई और प्रकाशित हो गई श्रीराम कथामृतम् (बाल खण्ड काव्य) ।श्री राम की कृपा से श्री राम कथामृतम् को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने 2020 के लिए सूर पुरस्कार से पुरस्कृत किया। इसके पूर्व 20 19 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ही बाल साहित्य साधना के लिए सुभद्रा कुमारी महिला बाल साहित्य सम्मान से भी नवाजा गया।
तत्पश्चात 2021 में मेरा कथा संग्रह रहस्य , कुंडलिया संग्रह अन्तर्ध्वनि तथा 2022 में बाल गीत संग्रह अक्कड़ – बक्कड़ बाॅम्बे बो, लघुकथा संग्रह “बातों-बातों में”, कथा संग्रह – “पूर्वा”, गीत नवगीत संग्रह – “जीवन की लय”, ग़ज़ल संग्रह – “हाँ इश्क है”, विवाह गीत संग्रह – “शगुन के स्वर तथा साझा संकलन -” बिहार छंद-काव्य रागिनी “प्रकाशित हुआ। बिहार छन्द काव्य रागिनी में मेरे अलावा दो और कवि हैं जिसमें दोहे तथा चौपाई छन्द में रामायण की तर्ज पर बिहार की गौरवगाथा लिखी गई है।
शीघ्र ही बाल कहानी संग्रह – “दादी की कहानियाँ तथा फेयरवेल उपन्यास प्रकाशित होने वाला है।

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Thursday 16 November 2017

समय और प्रतीक्षा

समय और प्रतीक्षा
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गज़ब प्रेम है न
समय और
प्रतीक्षा की भी
समय निष्ठुर
मगरूर
या फिर
आदत से मजबूर
चलने को रहता है
विवश
और
भावुक जिद्दी प्रतीक्षा
अपनी ही आदत से मजबूर
दिन रैन
अनवरत
ठहरी हुई सी
पलक बिछाए
रहती है
समय की
प्रतीक्षा  में
फिर
आखिरका
मजबूर होकर
आना ही पड़ता है
समय को
घूमकर

©किरण सिंह